आजकल जैविक और इको-फ्रेंडली उत्पादों का चलन धीरे-धीरे बढ़ने लगा है। हर किसी की कोशिश रहती है कि वह ज्यादा से ज्यादा पर्यावरण के अनुकूल उत्पाद अपनी जीवनशैली में शामिल करें। आज के डिजिटल जमाने में ऑनलाइन शॉपिंग आम बात है और ऐसे में, सभी उत्पाद किसी न किसी चीज में पैक होकर ही आते हैं। आपने भले ही जैविक साबुन ऑर्डर किये हो, लेकिन वे प्लास्टिक में पैक होकर आ रहे हैं तो फिर क्या फायदा? इसलिए जितना महत्व इको फ्रेंडली उत्पाद का है, उतना ही महत्व पैकेजिंग का भी है। इंडस्ट्री में इको फ्रेंडली पैकेजिंग की मांग को देखते हुए ओडिशा की एक युवती ने अनोखे स्टार्टअप (odisha startup) की शुरुआत की है। बारीपदा की 26 वर्षीया चांदनी खंडेलवाल ने ‘सस्टेनेबल पैकेजिंग’ के लिए ‘Ecoloop’ स्टार्टअप (odisha startup) की शुरुआत की है। जनवरी 2021 से शुरू हुए अपने इस स्टार्टअप के जरिए वह ओडिशा के कई कारीगर समूहों को न सिर्फ रोजगार दे रही हैं बल्कि कई ब्रांड्स को इको फ्रेंडली पैकेजिंग उपलब्ध करा रही हैं।
चांदनी ने द बेटर इंडिया को बताया, “मेरी माँ ने बहुत ही कम उम्र से मुझे शिल्पकला के क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने दसवीं कक्षा के बाद मेरा दाखिला स्कूल ऑफ़ आर्ट्स एंड क्राफ्ट्स, बारीपदा में कराया और यहां स्वर्गीय श्याम प्रसाद पटनायक सर ने मेरा मार्गदर्शन किया। उनके ही सुझाव से मैंने NIFT, भुवनेश्वर में दाखिला लिया। आर्ट्स और क्राफ्ट के क्षेत्र में, मैं हमेशा कुछ अलग करना चाहती थी। जिससे न सिर्फ समाज की, बल्कि हमारे पर्यावरण की भी भलाई हो।”
चांदनी ने बचपन से ही देखा था कि कैसे उनकी माँ कोई भी चीज बेकार नहीं जाने देती हैं। हर छोटी-बड़ी चीज को वह अपसायकल या रीसायकल करके इस्तेमाल में ले लेती हैं। इसके अलावा, ओडिशा में बहुत सी प्राकृतिक चीजों से क्राफ्ट बनाये जाते हैं जैसे बांस, सबाई घास और पेपर मैशे आदि से कारीगर बहुत अलग-अलग और सुंदर चीजें बनाते हैं। “मैं ऐसा कुछ करना चाहती थी जिससे कि इन कारीगरों को ज्यादा से ज्यादा काम मिले और हम अपनी शिल्पकला को जीवित रख सकें। कॉलेज के दिनों से ही मैंने अपनी जीवनशैली में भी बदलाव लाना शुरू किया। जैसे कि मेरा टिफिन पॉलिथीन में आता था तो मैंने दो सालों तक ये पॉलिथीन इकट्ठा की। एक भी पॉलिथीन को कचरे में नहीं जाने दिया बल्कि रीसायकल के लिए दिया,” उन्होंने बताया।
कॉलेज के आखिरी साल में चांदनी को अहमदाबाद के मशहूर ‘राइजोम’ फर्म के साथ इंटर्नशिप करने का मौका मिला। इस इंटर्नशिप के दौरान, उन्होंने राइजोम के एक ब्रांड के लिए सस्टेनेबल पैकेजिंग डिज़ाइन की। इसके लिए उन्होंने रेलवे द्वारा इस्तेमाल किए गए पुराने कार्डबोर्ड, फ्लेक्स शीट आदि को इस्तेमाल में लिया। उनकी इस पैकेजिंग को बहुत सराहना मिली और यहीं से चांदनी ने ठान लिया कि वह सस्टेनेबल और इको फ्रेंडली पैकेजिंग के क्षेत्र में आगे बढ़ेंगी। 2019 में अपनी डिग्री पूरी होने के बाद, उन्होंने ओडिशा रूरल डेवलपमेंट और मार्केटिंग सोसाइटी के साथ भी काम किया।
“इस सोसाइटी के साथ काम करते हुए ओडिशा के ग्रामीण इलाकों में हाथ का काम करने वाले कारीगरों से संपर्क बढ़ा। मैंने देखा कि हमारे पास पहले से ही इतने इको फ्रेंडली विकल्प मौजूद हैं, जिन्हें अगर सही तरह से मार्किट किया जाए तो न सर्फ ग्रामीण इलाकों में रोजगार बढ़ेगा बल्कि पर्यावरण के अनुकूल उत्पाद भी ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचेंगे। इसलिए मैंने Ecoloop (Odisha Startup) शुरू करने और इसे आगे बढ़ाने पर काम किया,” वह कहती हैं।
बांस, सबाई घास से बना रहीं इको फ्रेंडली पैकेजिंग
चांदनी कहती हैं कि Ecoloop के साथ फिलहाल 500 से ज्यादा कारीगर जुड़े हुए हैं, जो अलग-अलग समूहों में उनके लिए उत्पाद बनाते हैं। सबसे पहले उन्होंने कुछ कारीगरों से पैकजिंग के लिए उत्पाद बनवाये और इन्हें कुछ क्लाइंट्स को दिखाया। इसके बाद, जैसे-जैसे उनके ऑर्डर्स आने लगे तो उन्होंने अपने काम को आगे बढ़ाया। “मैंने शुरुआत में लगभग 20 हजार रुपए का निवेश किया था और इसके बाद, अब हम जो भी कमा रहे हैं, उसे आगे निवेश कर रहे हैं। फिलहाल, हम गिफ्टिंग पैकेजिंग पर काम कर रहे हैं और लगभग 20 तरह के उत्पाद बनाते हैं। इस पूरे सफर में, मेरे पति धीरज चौधरी ने मेरा साथ दिया है और हर सम्भव सहयोग किया गया,” उन्होंने बताया।
चांदनी कहती हैं कि सबाई घास, बांस, पेपर मैशे के अलावा वह टेरोकोटा और ताड़ के पत्तों के क्राफ्ट पर भी काम कर रहे हैं। ये सभी रॉ मटीरियल प्राकृतिक हैं। जैसे सबाई घास एक जंगली घास है। ग्रामीण इलाकों में लोग इस घास से टोकरी, डिब्बे, चटाई जैसी चीजें बनाते हैं। कई जगहों पर लोगों को इसी घास के बनाए उत्पादों से रोजगार मिलता है। प्रकृति के अनुकूल और किफायती होने के बावजूद इस तरह के उत्पाद बड़े स्तर पर अपनी पहचान नहीं बना पाते हैं। इसका मुख्य कारण है मार्केटिंग की कमी और आज की मांग के हिसाब से प्रोडक्ट्स न बन पाना। चांदनी अपने स्टार्टअप (Odisha Startup) के जरिए इन्हीं दो विषयों पर काम कर रही हैं।
उन्होंने बताया कि कुछ सामान्य प्रोडक्ट्स के अलावा, वह ग्राहकों की जरूरत और मांग के हिसाब से उत्पाद डिज़ाइन कर रहीं हैं। स्टार्टअप अभी शुरूआती स्टेज पर है लेकिन चांदनी का कहना है कि धीरे-धीरे वह इंडस्ट्री में अपनी पहचान बनाने में कामयाब हो रहीं हैं। उन्हें हर महीने तीन से चार बल्क ऑर्डर मिल रहे हैं।
सबाई उत्पादक समूह की सदस्य, ऊषा रानी कहती हैं, “अपने हाथ के हुनर से हम सभी आगे बढ़ना चाहते हैं। अब हमें यह मौका मिल रहा है। हमेशा से हमारी कोशिश रही थी कि हम सबाई घास के उत्पादों के लिए बड़े स्तर पर मैन्युफैक्चरिंग यूनिट सेटअप करें और इकोलुप की मदद से अब यह सपना साकार होता दिख रहा है। अगर हमें इसी तरह आगे बढ़ने का जरिया मिलता रहे तो इससे अच्छा और कुछ नहीं हो सकता है।”
चांदनी कहती हैं कि उनका उद्देश्य Ecoloop (Odisha Startup) को सस्टेनेबल पैकेजिंग के क्षेत्र में बड़ा ब्रांड बनाना है। ताकि वह सिर्फ ओडिशा ही नहीं बल्कि अलग-अलग इलाकों के कारीगरों और शिल्प के साथ काम कर सकें। क्योंकि भारत में हर इलाके में आपको कोई न कोई ख़ास शिल्पकला मिल जाएगी जैसे उत्तर प्रदेश में सरकंडा मशहूर है तो बिहार में सिक्की कला। ये सभी पारंपरिक शिल्प कला प्लास्टिक के उत्पादों का अच्छा विकल्प हैं। जरूरत है बस सही प्लेटफॉर्म और मार्केटिंग की।
अगर आप चांदनी से संपर्क करना चाहते हैं तो उन्हें इंस्टाग्राम (@the_ecoloop) पर मैसेज कर सकते हैं।
संपादन- जी एन झा
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